।। श्री निराजनम्’।।

ऊँ जयशिव ओंकारा इति लये’

ऊँ जय शिव ! जयशंकर ! प्रभो जय शिव ! जय शंकर !

श्रीझाडखण्डेश्वर ! जय करूणा कर ! हर।।

निराकार ! निर्लेप! निरंजन! चिदाकाश ! शशिभाल !।

अप्रमेय ! मृत्युंजय! अणोरणो! सुविशाल! ।।१।।

ऊँ जय शिव ! जय शंकर

गणपति गिरिजा नन्दी, कार्तिकेय सहितम्।

वृतं कुबेरादिभिरनिश, नौमि कुटुम्बयुतम्।।२।।

ऊँ जय शिव ! जय शंकर

परशुमहोक्षाजिनखट्वाडढ, कपालभस्मफणीन्।

रक्षन् स्वात्माराम! वितरसि सिध्दिनिधिन्।।३।।

ऊँ जय शिव ! जय शंकर

वृषभध्वज! कामारे! विश्वनाथ! शंभो!

त्रिशूल डमरू घारिन! रूद्र! स्वयंभो ।।४।।

ऊँ जय शिव ! जय शंकर

भवभय हारक! तारक! चराचरोद्धारक!

लोकत्रय संहारक ! भुक्ति- मुक्ति-कारक!।।५।।

ऊँ जय शिव ! जय शंकर

प्रतिप्रदोषे बिल्वै, पत्र पुष्प हारैः।

विभासि नित्यं विविधैः, सुन्दर शृडाढरै।।६।।

ऊँ जय शिव ! जय शंकर

नहि मे किंचित् ज्ञानं, नो जानेध्यानम्।

जाने केवलमेकं , नामामृतपानम्।।७।।

ऊँ जय शिव ! जय शंकर

त्वमेव माता, पिता त्वमेव, त्वमेव मे द्वविणम्।

त्वमेव मे सर्वस्वं, याचेऽहं शरणम्।।८।।

ऊँ जय शिव ! जय शंकर

प्रभो, जय जय गंगाधर! प्रभो! जय जय कामेश्वर!

प्रभो! जय व्याघ्राम्बर! श्री झाडखण्डेष्वर! जय करूणाकर! हर!।

ऊँ जय शिव ! जय शंकर ! ।।